हज़रत इमामे मेहदी आ स और उलमाये अहलें सुन्नत हर ज़माने का एक इमाम है ये सारा ज़माना जानता है म...
हज़रत इमामे मेहदी आ स और उलमाये अहलें सुन्नत
हर ज़माने का एक इमाम है ये सारा ज़माना जानता है मगर इस मसले में कुछ लोग
ताविलात का सहारा लेते है और मुबागले से काम चालते है
जिसमे कुछ लोग इमाम से मुराद क़ुरान लेते है जबकि क़ुरान किसिम इक ज़माने नहीं है जिसकी तरफ क़ुरान ने खुद इशारा किया है
क़ुरान अहमियति इमाम के मुतलक़ फरमाता है की
[ يوم ندعو ا كل أناس با مامهم ] जिस दिन हम हर इक को इसके इमाम के साथ आवाज़ देंगे देंगे [बनी इसयाएल ७१ ]
हज़रत रसूले खुदा की इक निहायत ही मशूरो मारूफ हदीस है इंदाज़ सुन्नी मुहद्देसीन ने नक़ल किया है
[जो शख्श अपने इमामइ वक़्त की मार्फत के बगैर मर जाइये तो इसकी मौत जाहिलियत की है ]
आयऐ और हदीस पर गोर करने से बात बिलकुल वाज़े हो जाती है की हर ज़माने में मख्सूस इमाम है जिसकी मारेफ़त वाजिब है और साथ लोग महशूर होओगे।
इस वक़्त हमारे ज़माने का इमाम कौन है ?
जिसकी मारेफ़त ज़रूरी व लाजज़मी है ता की हम जाहिलियत की मौत न मरे।
हज़रत रसूले खुदा स आ ने इमाम मेहदी ा स को आखरी ज़माने कला इमाम क़रार दिया है
आप इसी हिदायत की आखरी कड़ी हैंजिसकी इब्तेदा हज़रत इमाम अली आ स इब्ने अबी तालिब से हुई
हज़रत रसूले खुदा ने अरशाद
फ़रमाया की 'मेरे बाद बारह इमाम होओगे जो सब के सब क़ुरैश से हुन्गे।;
ये बारह की दाताद इसी सिलसिले आशना आशरी पर मंताबिक़ होती है जिसकी इब्तेदा हज़रत अली ा स और इन्तहा इमाम मोहम्मद मेहदी ा स हैं /
जारी।
salamun alaikum
ReplyDeleteMashallah
ReplyDeleteशुक्रिया
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