काशी में व्यापार बनी अंतिम यात्रा कंधा देने के लिए भी पांच हजार हरिश्चंद्र घाट पर कोरोना संक्रमितों के परिजन झेल रहे परेशानी S नरिया के दीप...
काशी में व्यापार बनी अंतिम यात्रा
कंधा देने के लिए भी पांच हजार
हरिश्चंद्र घाट पर कोरोना संक्रमितों के परिजन झेल रहे परेशानी
S
नरिया के दीपक कोरोना संक्रमित परिजनका शव लेकर हरिश्चंद्र पाट पर वाहन चेतगंज पान दरीबा के प्रभानंद के परिजन को कोरोना संक्रमण से अस्पताल में मौत
केस एक देने के लिए चार कंधे नहीं होने से वह बेचारगी से हार-उधर
से पहुंचे उनके साथ उनका भाई राजेश भी था। शव को कंया
केस दो
हो गई। यह अस्पताल मे सो हरिश्चंद्र पाट पहुंचे। अकेले होने
के कारण शव को पार तक ले जाने की समस्या थी। दो युवक
देख रहे थे। तभी एक युवक उनके पास पहुंचा और उसने कहा कि परेशान ना हो उनको परेशान देखकर उनके पास पहुंचे और कंधा देने की बात कही। ऐसे में
हम कंधा दे देंगे। आश्चर्य में देखने के बाद बाद दीपक ने कहा कि कोरोना मोलभाव भी हुआ और बात चार हजार में पक्की हो गई। इसके बाद चार युवकों ने
संक्रमण से मौत हुई तो युवक ने कहा कि कोई बात नहीं है आप बस पांच हजार शव को टिकठो पर बांधने, पाट तक पहुंचाने, कफन देने और चिता तक पहुंचाने
रुपये दे दिजिएगा, चिता तक शव को हम मुचा देंगे।
का काम पूरा किया।
अमर उजाला ब्यूरो
अंतिम यात्रा में चार
कों के इंतजाम के
वाराणसी। यह यही शहर है जहां
लिए पैसे देने पड़
रहे हैं। महामारी काल
मुंशी प्रेमचंद्र की रचना मंत्र का पात्र
में इस तरह की स्थितियां
भगत जैसे लोग होते थे, जो अपना
बेहद शर्मिदा करने वाली है।
दुख छोड़कर दूसरों के दुख को दूर
हालात ऐसे है कि सभी के
करने का प्रयास करते थे। लेकिन
सामने विवशता है। मोक्ष
महामारी ने स्थितियां ऐसी बना दी है
परंपरा वाले शहर काशी में
कि अब तो अपने भी दुख में साथ
इस तरह की घटना हर
नहीं खड़े हो पा रहे हैं। ऐसे में भगत
किसी के लिए विचारणीय
जैसे तो किरदार नहीं है लेकिन कुछ
है। कन्हैया दुवे, केडी,
ऐसे भी हैं जो पैसा लेकर भगत जैसा हरिश्चंद्र घाट पर एक साथ देर सारे शव लगातार जल रहे हैं। ऐसे दृश्य देखकर सबके
काम कर रहे हैं।
कोरोना काल में जब अपने
मन में यह सवाल उठता है कि आखिर यह महामारी कब खत्म होगी।। अमर उजाला
हरिश्चंद्र पाट पर अंतिम यात्रा के
अंतिम यात्रा में शामिल नहीं
पा रहे है तो जाहिर सीबत चार
दौरान चार कंधे भी अब चार से पांच दो आदमी ही घाट पर पहुंच रहे हैं। पर रखकर इस काम को अंजाम दे
कंधों की कमी तो महसूस होगी। पैसे
हजार में उपलब्ध हो रहे हैं। कोरोना ऐसे में शव को सड़क से लेकर रही है।
लेकर जान जोखिम में डालकर कुछ
संक्रमण के कारण मौत होने पर चिता तक पहुंचाने के लिए चार एक तरफ जरूरत है तो दूसरी या कोरोना से मरने वालों को कथा दे
परिजन भी अंतिम यात्रा में शामिल कंधों की बोली चार से पांच हजार तरफ विवशता। मोक्ष की नगरी रहे है। ऐसी परिस्थितया है कि इस बारे
नहीं हो पा रहे हैं। स्थितियां ऐसी बन रुपये में लग रही है। कुछ युवाओं काशी में अब चार कंधे भी बिना
में कुछ कहा भी नहीं जा सकता है।
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